आज 1 दिसंबर World AIDS Day के रूप में मनाया जाता है।
जब भी एड्स की बात आती है तो एचआईवी की बात आती ही है। लेकिन एचआईवी और एड्स के बारे में लोगों में कई तरह के भ्रम भी होते हैं। कुछ लोगों को ये दोनों एक ही लगते हैं जबकि ऐसा है नहीं। एचआईवी और एड्स के बीच मुख्य अंतर क्या है इसके बारे में सभी को जानना चाहिए। एचआईवी और एड्स के बीच सबसे बड़ा फर्क तो यही है कि एचआईवी एक वायरस है और एड्स एक बीमारी है जिसमें शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता नष्ट हो चुकी होती है।

एचआईवी का पूरा नाम ह्यूमन इम्यूनो डिफिशिएंसी वायरस है। यह एक वायरस है जो मनुष्य के इम्यून सिस्टम को प्रभावित करता है। एड्स का पूरा नाम एक्वायर्ड इम्यूनोडिफिशिएंसी सिंड्रोम है। जब एचआईवी वायरस इम्यून सिस्टम को पूरी तरह नष्ट कर देता है उसके बाद यह एड्स में बदल जाता है। विश्व एड्स दिवस हर साल दुनिया में 1 दिसम्बर को मनाया जाता है। 1 दिसंबर को World AIDS Day मनाने की पहल WHO द्वारा 1988 में शुरू किया गया था। विश्व एड्स दिवस का उद्देश्य एचआईवी व एड्स के बारे में लोगों को जागरुक करने के लिए मनाया जाता है। हर साल इसकी अलग अलग थीम रखी जाती है । 2023 का थीम है Let communities lead

क्या है एचआईवी
हानिकारक एजेंट से लड़ने के लिए व्यक्ति के शरीर में प्राकृतिक रक्षा तंत्र होता है। एचआईवीहमारे इम्यूव सिस्टम को प्रभावित करता है। शरीर को बीमारियों से बचाने के लिए इम्यून सिस्टम सफेद रक्त कोशिकाओं को इस्तेमाल करता है।हालांकि एचआईवी वायरस सफेद रक्त कोशिकाओं के साथ CD4 को भी प्रभावित करता है। CD4 एक ग्लाइकोप्रोटीन होता है जो इम्यून कोशिकाओं की सतह पर पाया जाता है। इस वायरस की वजह से एचआईवी इंफेक्शन होता है जिसका अभी तक कोई सही तरीके से इलाज नहीं हैं।

HIV और AIDS में अंतर।

जब भी AIDS की बात आती है तो HIV की बात आती ही है। लेकिन HIV और AIDS के बारे में लोगों में कई तरह के भ्रम भी होते हैं। कुछ लोगों को ये दोनों एक ही लगते हैं है जबकि ऐसा है नहीं। एचआईवी और एड्स के बीच मुख्य अंतर क्या है इसके बारे में सभी को जानना चाहिए। एचआईवी और एड्स के बीच सबसे बड़ा फर्क तो यही है कि एचआईवी एक वायरस है और एड्स एक बीमारी है जिसमें शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता नष्ट हो चुकी होती है।

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हालांकि एचआईवी वायरस सफेद रक्त कोशिकाओं के साथ CD4 को भी प्रभावित करता है। CD4 एक ग्लाइकोप्रोटीन होता है जो इम्यून कोशिकाओं की सतह पर पाया जाता है। इस वायरस की वजह से एचआईवी इंफेक्शन होता है जिसका अभी तक कोई सही तरीके से इलाज नहीं है।

एचआईवी इंफेक्शन कब एड्स में बदलता है
यह बात का पता होना जरुरी होता है कि एड्स किसी भी बीमारी के कारण नहीं हो सकता है। यह एचआईवी इंफेक्शन का परिणाम होता है। एचआईवी इंफेक्शन की आखिरी स्टेज में शरीर का इम्यून सिस्टम पूरी तरह से फेल हो जाता है। इस कंडीशन को एड्स कहा जाता है।

एड्स की वजह से वजन कम होना, सिरदर्द के साथ अन्य शारीरिक और मानसिक समस्याएं होने लगती है। एड्स से ग्रसित व्यक्ति को किसी भी तरह के संक्रमण हो सकते हैं क्योंकि इम्यून सिस्टम पूरी तरह फेल हो चुका होता है।
HIV का इतिहास :-
सबसे पहले 19 वीं सदी में अफ्रीका में खास प्रजाति के बंदरों में एड्स का वायरस पाया गया। बंदरों से इस बीमारी का प्रसार इंसानों तक हुआ। अफ्रीका में बंदर खाए जाते थे। ऐसे में माना गया कि इंसानों में बंदर खाने के कारण वायरस पहुंचा।
जानकारी के मुताबिक, 1920 में अफ्रीका के कांगो में एचआईवी संक्रमण का प्रसार हुआ। 1959 में एक आदमी के खून के नमूनों में सबसे पहला एचआईवी वायरस पाया गया। इस संक्रमित व्यक्ति को ही एचआईवी का सबसे पहला मरीज माना जाता है। कांगो की राजधानी किंशासा यौन ट्रेड का केंद्र था। इसलिए दुनिया के कई देशों तक यौन संबंधों के माध्यम से एचआईवी का प्रसार हुआ।

AIDS का पुराना नाम:-
पहली बार एड्स की पहचान 1981 में हुई। लाॅस एंजेलिस के डॉक्टर ने पांच मरीजों में अलग अलग तरह के निमोनिया को पहचाना। इन मरीजों की रोग प्रतिरोधक क्षमता अचानक कमजोर पड़ गई थी। हालांकि पांचों मरीज समलैंगिक थे। इसलिए चिकित्सकों को लगा कि यह बीमारी केवल समलैंगिकों को ही होती है। इसलिए इस बीमारी को ‘गे रिलेटेड इम्यून डिफिशिएंसी’ (ग्रिड) नाम दिया गया। लेकिन बाद में दूसरे लोगों में भी यह वायरस पाया गया, तब जाकर 1982 में अमेरिका के सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन ने इस बीमारी को AIDS नाम दिया।

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