सांची स्तूप के करीब सलामतपुर की पहाड़ियों पर निर्माणाधीन सांची विश्वविद्यालय की साइट पर निम्न पुरापाषाण काल के अवशेष मिले हैं। पुरातत्व विभाग के प्राथमिक सर्वेक्षण के अनुसार ये निम्न पुरापाषाण काल के अवशेष लगभग 10 से 15 लाख वर्ष पुराने हैं। इन अवशेषों का परीक्षण पुरातत्व विभाग से जुड़े शोधार्थियों ने किया है। इन अवशेषों की खोज से सांची विश्वविद्यालय परिसर की ऐतिहासिकता पुष्ट हो गई है, जहां आज से 10 से 15 लाख वर्ष पूर्व भी आदिमानव निवास कर रहा था। इन अवशेषों को सांची विश्वविद्यालय के नवनिर्मित परिसर में स्थापित किया जाएगा।

विश्वविद्यालय के कुलसचिव प्रो. अलकेश चतुर्वेदी ने बताया कि सांची विश्वविद्यालय के निर्माण स्थल की खुदाई के दौरान इस जगह के पुरातात्विक अध्ययन का आग्रह पुरातत्व विभाग के पूर्व सहायक निर्देशक जनरल डा. एसबी ओटा से किया था, जिसके बाद डा. ओटा की टीम ने निर्माण स्थल का दौरा कर सैंपल इकट्ठा किए। डा. ओटा ने बताया कि ये अवशेष निम्न पुरापाषाण काल के पत्थरों के बने औजार हैं। जिनमें क्लीवर्स(चाकूनुमा), चापर्स(छीलने में उपयोग किए जाने वाले कुल्हाड़ीनुमा), स्क्रैपर्स(खुरचने के काम में उपयोग होने वाली) आदि शामिल हैं। ये औजार, उन औजारों से मेल खाते हैं जो कि रायसेन जिले के टिकोडा-डामडोंगरी क्षेत्र में पाए गए थे।

यहां इन औजारों के साथ बहुत से ऐसे अवशेष भी मिले हैं जिनके बारे में कहा जा सकता है कि ये इन पत्थरों के औज़ारों को तैयार करने के दौरान शेष बचे होंगे। विश्वविद्यालय परिसर के दक्षिणी हिस्से में मिले इन निम्न पुरापाषाण काल के अवशेष विंध्यांचल पर्वत श्रेणियों के क्वाट्र्ज-सेंड स्टोन के बने हुए हैं। बौद्ध अध्ययन के अपने समस्त पाठ्यक्रमों के साथ-साथ सांची बौद्ध-भारतीय ज्ञान अध्ययन विश्वविद्यालय अगले अकादमिक सत्र से ही प्राचीन भारतीय इतिहास, संस्कृति एवं पुरातत्व में भी नया रिसर्च प्रोजेक्ट शुरु कर रहा है जो सांची के ऐतिहासिक महत्व को स्थापित करेगा।

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