वैशाख माह की मोहिनी एकादशी बहुत ही शुभ फलदायी मानी जाती है।
हिंदू धर्म में एकादशी का विशेष महत्व माना जाता है। धार्मिक मत है कि जो भी व्यक्ति एकादशी का व्रत करता है उसके जीवन में सुख-समृद्धि और धन-संपदा बनी रहती है।
मोहिनी एकादशी का व्रत 19 मई को रखा जाएगा। मोहिनी एकादशी का अपना अलग ही महत्व माना गया है, क्योंकि इस दिन भगवान विष्णु ने धर्म की रक्षा के लिए मोहिनी अवतार लिया था। इसलिए इस दिन भगवान विष्णु के मोहिनी स्वरूप की पूजा की जाती है।
सभी एकादशी में मोहिनी एकादशी को बहुत शुभ और फलदायक माना जाता है। कहा जाता है कि इस व्रत के शुभ फल से व्यक्ति जन्म-पुनर्जन्म के चक्र से मुक्त हो जाता है और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।
मोहिनी एकादशी पूजा सामग्री
मोहिनी एकादशी की पूजा थाली में कुछ खास चीजों को शामिल करने से पूजा सफल हो जाती है और भगवान विष्णु भी प्रसन्न होते हैं। आइए जानें मोहिनी एकादशी की पूजा थाली में किन चीजों को शामिल करें। पूजा थाली में चौकी, सुपारी, तुलसी, नारियल, पीला चंदन, पीला वस्त्र, आम के पत्ते, कुमकुम, पीले फूल, मिठाई, अक्षत, लौंग, धूप, दीप, फल, भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की प्रतिमा शामिल करें।
मोहिनी एकादशी की पूजा विधि
मोहिनी एकादशी व्रत के दिन सुबह जल्दी उठकर (ब्रह्म मुहूर्त में) स्नान कर साफ कपड़े पहनें।
फिर सूर्यदेव को जल अर्घ्य दें। कोशिश करें कि इस दिन पीले रंग के कपड़े पहनें।
इसके बाद भगवान विष्णु का पूरी श्रद्धा और भक्ति से ध्यान करते हुए एकादशी व्रत का संकल्प लें।
भगवान विष्णु के मोहिनी स्वरूप का ध्यान करते हुए उन्हें रोली, मोली, पीली चंदन, अक्षत, पीले फूल, फल, और मिठाई अर्पित करें।
फिर धूप-दीप से भगवान विष्णु को पीले वस्त्र पहनाएं और आरती उतारें।
इसके बाद मोहिनी एकादशी व्रत कथा पढ़ें। साथ ही ॐ नमो: भगवते वासुदेवाय मंत्र का जाप और विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें।
इसके बाद कलश स्थापित कर भगवान विष्णु की पूरी श्रद्धा से पूजा करें. उन्हें दीप, धूप, नैवेद्य और फल अर्पित करें।
मोहिनी एकादशी के दिन स्वर्ण दान, भूमि दान, गौदान, अन्नदान, जलदान, जूते, छाता और फल आदि का दान करना चाहिए।
मोहिनी एकादशी के दिन व्रत कथा का पाठ जरूर करना चाहिए. मोहिनी एकादशी में रात्रि जागरण का विशेष महत्व माना जाता है।
ऐसा कहा जाता है इस दिन रात्रि जागरण करने से वर्षों की तपस्या के बराबर पुण्य की प्राप्ति होती है।
मोहिनी एकादशी पर रातभर जागकर भगवान ध्यान और भजन कीर्तन करें। द्वादशी के दिन पूजा-पाठ के बाद ब्राह्मण या फिर किसी जरूरतमंद को भोजन कराएं और उन्हें दान-दक्षिणा दें। इसके बाद ही व्रत का पारण करें।