आज देश की जानी-मानी राजनेता और पूर्व राज्यपाल अनुसुइया उइके का जन्मदिन है। इस अवसर पर देशभर से उन्हें शुभकामनाएं मिल रही हैं। अनुसुइया उइके का जीवन एक सशक्त महिला नेतृत्व की मिसाल है — एक ऐसा सफर, जिसमें संघर्ष भी था, समर्पण भी और उल्लेखनीय उपलब्धियाँ भी। राजनीति में ऐसे नाम विरले होते हैं जो नारे नहीं लगाते, लेकिन उनका जीवन ही एक सशक्त वक्तव्य बन जाता है। पूर्व राज्यपाल अनुसुइया उइके उन्हीं चंद नामों में शुमार हैं। आज जब वह अपना जन्मदिन मना रही हैं, तो यह केवल एक व्यक्तिगत दिन नहीं है ,यह उस जनजातीय चेतना, स्त्री सशक्तिकरण और सार्वजनिक सेवा की निरंतर यात्रा का उत्सव है, जिसे उन्होंने दशकों तक जिया है।
मूल से शीर्ष तक

एक कठिन लेकिन सच्चा सफर अनुसुईया उइके का सफ़र एक कठिन एवं सच्चा सफ़र रहा है तथा मिट्टी से उठी एक चिंगारी ने आज एक ऐसे प्रकाश स्तभ का स्वरूप ले लिया है जो समाज के विभिन्न वर्गों विशेषकर आदिवासी ओर महिलायों के लिए प्रेरणा का श्रोत बना हुआ है ग्राम रोहनाकला में पली-बढ़ी सुश्री उइके की कहानी किसी लोककथा सी है। साधन कम थे, लेकिन सपने बड़े , जिसे उन्होंने अपने संघर्ष ओर जुनून से पुरे किये । मध्यप्रदेश के एक दूरस्थ अंचल से उठकर शासकीय महाविद्यालय तामिया में कॉलेज व्याख्याता से प्रारभ हुआ यह सफ़र ,विधायक ,मंत्री ,राष्ट्रीय व राज्य अनुसूचित जनजाति आयोग , राष्ट्रीय महिला आयोग ओर राज्यसभा सांसद से होते हुए राज्यपाल के पद तक पहुँचता है जो किसी सामान्य व्यक्तित्व की बात नहीं है। अनुसुइया उइके का बचपन उन परिस्थितियों में बीता जहाँ शिक्षा, अधिकार और आत्मविश्वास—तीनों को लड़कर हासिल करना पड़ता था ,लेकिन यही संघर्ष उनकी पूंजी बना । वे छात्र जीवन से ही वे सामाजिक सवालों से टकराती रहीं, और जल्दी ही राजनीति उनके लिए केवल मंच नहीं, बल्कि मिशन बन गई।
राजनीतिक कैरियर : मुद्दों की राजनीति, चेहरे की नहीं
अनुसुईया उइके का प्रवेश छात्र संघ की राजनीति से हुआ, लेकिन उन्होंने खुद को कभी दलगत सीमाओं में कैद नहीं होने दिया। सुश्री उइके ने 1985 में कांग्रेस से दमुआ विधानसभा क्षेत्र से विधायक बनकर राजनीति में कदम रखा और 1988-89 में मध्यप्रदेश सरकार में महिला एवं बाल विकास मंत्री रहीं, बाद में भाजपा से जुड़कर राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग की उपाध्यक्ष, मध्यप्रदेश अनुसूचित जनजाति आयोग की अध्यक्ष ,राष्ट्रीय महिला आयोग सदस्य वर्ष 2006 में राज्यसभा सांसद, और फिर 2019 से 2023 तक छत्तीसगढ़ एवं 2023-2024 मणिपुर की राज्यपाल के रूप में जन सरोकार के रूप में उल्लेखनीय योगदान दिया। वे हर मंच पर ऐसे लोगों की आवाज़ बनीं जो अक्सर सत्ता की गलियों में अनसुने रह जाते हैं।
राज्यपाल के रूप में संवैधानिक गरिमा की मिसाल
अनुसुईया उइके जब 29 जुलाई 2019 में जब छत्तीसगढ़ की राज्यपाल नियुक्त हुई , तब उन्होंने ‘राज्यपाल’ के रूप में संवैधानिक गरिमा की मिसाल कायम की उन्होंने राज्यपाल की भूमिका को केवल औपचारिकता से आगे बढ़ाकर उसे जनसंवेदनाओं से जोड़ने का प्रयास किया। अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने राजभवन के द्वार आम जनता के लिए भी खोलकर एक अनोखी परंपरा की शुरुआत की। ग्रामीण, युवा, महिलाएँ और ज़रूरतमंद नागरिक सीधे उनसे मिलकर अपनी समस्याएँ साझा कर सकते थे। इस कदम ने राजभवन की छवि को औपचारिकता से हटाकर जनसरोकार का केंद्र बना दिया। वे ग्रामीण महिलायों की समस्या के प्रति अत्यंत संवेदनशील रही ओर यही कारण है कि जब छत्तीसगढ़ राज्य के गरिया बंध जिले के ग्राम सुफेबेड़ा की किडनी रोग से प्रभावित महिलाये उनसे मिली तो उन्होंने तत्काल नि:शुल्क उपचार की व्यवस्था करवाई और जिस तेल नदी का पानी पीकर महिलाये ओर ग्रामीण जन किडनी रोग से प्रभावित हो रहे थे उस तेल नदी पर पुल निर्माण कराने के साथ ही वाटर फ़िल्टर प्लांट की स्थापना भी करायी जिससे ग्राम सुफेबेड़ा के ग्रामीणों को शुद्ध पेयजल मिल रहा है ओर अब वे स्वस्थ जीवन जी रहे है ।
मणिपुर कार्यकाल
अनसुइया उइके ने 22 फरवरी 2023 को मणिपुर की 18वीं राज्यपाल के रूप में कार्यभार संभाला और उसके कुछ ही समय बाद, राज्य जातीय हिंसा की चपेट में आ गया। उन्होंने हिंसा प्रभावित क्षेत्रों का दौरा कर राहत शिविरों में लोगों से मुलाकात की और केंद्र व राज्य सरकार के साथ समन्वय स्थापित कर राहत एवं पुनर्वास कार्यों को गति प्रदान की । उन्होंने राजभवन को आम नागरिकों के लिए सुलभ रखा, जिससे लोग बिना भेदभाव के अपनी समस्याएँ सीधे साझा कर सके। इस चुनौतीपूर्ण दौर में उनका नेतृत्व मणिपुर की जनता के लिए आशा और संवेदनशीलता की मिसाल बना। इस राज्य की आदिवासी महिलायों ने उनमे मातृत्व गुण से भरपूर ऐसी महिला की कल्पना की जो उनकी अपनी माँ में ही हो सकती है इसलिए वे उनके बीच मदर के रूप में विख्यात हुई ।
एक आदिवासी महिला की आवाज, जो आज भी गूंजती है
अनुसुइया उइके आज भले ही किसी संवैधानिक पद पर न हों, लेकिन उनका राजनीतिक और सामाजिक योगदान आज भी उतना ही प्रासंगिक है। वे उन गिने-चुने नेताओं में हैं जिनकी पहचान पदों से नहीं, पदचिन्हों से होती है। उनका जीवन आदिवासी समाज के लिए, महिलाओं के लिए और ग्रामीण भारत की बेटियों के लिए प्रेरणा का स्रोत है। उनकी आवाज एक ऐसी आदिवासी महिला की आवाज है जो आज भी विभिन्न क्षेत्रो में गुंजायमान है उन्होंने राजनीति को सेवा से जोड़ा, और सत्ता को समाज से । ”

उनकी शख्सियत न केवल राजनीतिक बल्कि सामाजिक चेतना की भी प्रतीक होती तथा उनका संघर्ष और योगदान आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रकाश स्तंभ की तरह है.।

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